साहित्य का सृजन तब होता है जब मन में उपजी भावनाएं कलम के माध्यम से कागज पर उकेरी जाती हैं। सच यह भी है कि संसार में प्रत्येक प्राणी में अनुभूति की क्षमता है, किन्तु अभिव्यक्ति की क्षमता किसी विरले में ही होती है। काव्य या गद्य को विविध सीमाओं में भले ही कितना भी बांधने का प्रयास किया जाए, किन्तु मन के उद्गार किसी भी साहित्यिक विधा के मोहताज नहीं हैं। एक तेजस्वी स्वर जब सृजन करता है तब साहित्य की शिल्पगत विशिष्टताओं की वह परिभाषा नहीं जनता। मन में उपजी भावनाओं की स्पष्ट अभिव्यक्ति ही उसके रचना संसार को प्रस्तुत करता है। आगे समीक्षकों की दृष्टि कि वे उसे किस रूप में स्वीकारें। कहानीकार निर्झर ‘आजमगढ़ी’ का यह कहानी संकलन ‘अर्थ खोजती आकृतियाँ’ भी इससे इतर नहीं है। कथाकार ने अपने सामाजिक और व्यवहारिक अनुभवों को अपनी इस पुस्तक में उकेरा है जो निष्चित ही सीख देते प्रषंसनीय प्रयास है।