विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित यह कृति न केवल एक प्रसिद्ध नाटककार और लेखक की प्रतिनिधि रचनाओं का संग्रह है, बल्कि यह कुन्ती जैसी पौराणिक पात्र को आधुनिक दृष्टिकोण से पुनर्परिभाषित करती है।
यह पुस्तक उन मौन प्रश्नों को स्वर देती है जो सदियों से स्त्रियों के अंतर में छिपे रहे—स्वतंत्रता बनाम कर्तव्य, आत्मबलिदान बनाम आत्म-सम्मान, और माँ की भूमिका बनाम नारी की पहचान।
एक और कुन्ती केवल पौराणिक कथा का पुनर्लेखन नहीं, बल्कि हमारे समाज के भीतर छिपी वेदना और विचारशीलता की आवाज़ है, जो हर संवेदनशील पाठक को भीतर तक झकझोर देती है।
यह संग्रह उन पाठकों के लिए है जो साहित्य को केवल शब्दों का खेल नहीं, बल्कि विचारों, संवेदनाओं और अंतर्दृष्टि की यात्रा मानते हैं।
एक और कुन्ती एक कालजयी दस्तावेज़ है—जो हमें अपने अतीत से जोड़ते हुए वर्तमान के कठिन प्रश्नों से भी साक्षात्कार कराता है।